या किसी पर गुस्सा हो और मुँह फुलाए बैठे हो
रोज तो होती नहीं दिलों में इतनी आग
जो आग निकालने की है उसे दिल मे छुपाए बैठे हो
आज से वादा कर लो हर बात बताओगे
वो बात भी बता दो जिसे दिल मे दबाये बैठे हो
हर बात में कुछ बात तो होती है
किस बात से शरमा रहे हो जो यूँ पलके झुकाए बैठे हो
उंगलियों में कुछ अजीब से कशिश नज़र आ रही है
क्यों हाथ से हाथ सटाए बैठे हो
आंखों में कुछ हया सी लग रही है
क्यों सबसे नज़रें चुराए बैठे हो
तुम्हारे हर सवाल का जवाब हमारे पास है
लगता है तभी तो तुम हमारे पास आये बैठे हो
28 Jan 2010
> हर रात काट लेते हैं तेरी यादों के सहारे में
> हर रात काट लेते हैं तेरी यादों के सहारे में
मेरी आँखों को कोई गम नही होता
हर सांस ले लेते हैं तेरी आवाज़ के सहारे में
तेरी बातों सा कोई गम नहीं होता
हर धड़कन से तेरी बेबसी झलकती है
दिल उदास क्यों है जो तू मेरे पास नहीं है
अपने आंसू संभालने की कोशिश तो कर
क्यों सोचते हैं ऐसा कि मिलने की आस नहीं है
हर नज़र में इंतजार तेरी आहट का है
दिल की पुकार में बेसब्री तेरी चाहत का है
हर पलक झपकने से पहले तेरे दीदार को तरसते हैं
अब तो आंखों से शोले भी पानी की तरह बरसते हैं
हर वक़्त हाथों से तेरा ही नाम लिखा करते हैं
जिस दिन हो सके मुलाक़ात अंदाजे तारीख लिखा करते हैं
न हो जाओ तुम गुम कहीं कंड की तरह रेत के तूफान में
इसलिए तुम्हे अपने सीने से लगा कर रखा करते हैं
हर चेहरे में तेरी ही सूरत नज़र आने लगी है, दीवानगी तो देखो
कहीं हो न जाऊं दीवाना तेरी चाहत में कमबख्त
इसलिए अब तो हम दर्पण देखने से भी डरा करते हैं
23 Jan 2010
> तेरी यादों का कुछ यूं सहारा है
> तेरी यादों का कुछ यूं सहारा है
की लग रहा है आज रात तू हमारा है
तेरी नज़रे हमसे कुछ यूँ टकरा रही हैं
मानो कोई बिजली हमारे करीब आ रही है
तेरे रुखसार सी कलियां कुछ यूं खिल रहे हैं
कि जैसे दूर कहीं दो कमल खिल रहे हैं
होंठो की मुस्कान कुछ दबी सी जा रही है
जैसे कोई गुलाब की पंखुड़ी खिलने से शरमा रही है
आज तो बस दिल की आवाज़ है कि सारी रात तुम्हे यूँ ही देखता रहूं
और इज़ाज़त हो तुम्हारी तो प्यार से तुम्हे बाहों में भर लूं
22 Jan 2010
> आज आंसुओं ने फिर कुछ याद दिलाया है,
> आज आंसुओं ने फिर कुछ याद दिलाया है,
क्यों मेरा यार मुझको फिर याद आया है,
ओस की बूंदों से ये पैगाम भिजवाया है,
देख तेरे लिए तेरा यार चंद लम्हे गंवाया है,
हो तो जाती नहीं है बेरुखी इस कदर वक़्त से,
कि याद आने के लिए भी वक़्त को मनाना पड़ता है,
अब तो यादों से निकलने का मन ही नहीं करता है,
आप तो मिलते नहीं यादों से मन बहलाना पड़ता है,
कभी सोचो बैठ कर मेरी जगह कि क्या होता है
कभी सोचो बैठ कर मेरी जगह कि क्या होता है
हम होते तो यादों तक पहुंचने का मौका ही न होता
सोचने बैठते हमारे बारे में तो हमें अपने सामने पाते
और हमारी याद आने से पहले आपके पास चले आते
19 Jan 2010
> हर बार चांदनी ने पूछा तू इतना उदास क्यों है
> हर बार चांदनी ने पूछा तू इतना उदास क्यों है
पास है तेरा हमसफर फिर तन्हाई का एहसास क्यों है
हर बार उसके सवालों को सुन आंसू छलक जाते हैं
बिन बुलाए कई नगमें चले आते हैं
यादें भी तड़पाने से बाज़ नहीं आती हैं
यादें भी तड़पाने से बाज़ नहीं आती हैं
जागते हुए यूँही सारी रात गुजर जाती है
उंगलियों में कुछ चुभन सी महसूस होती है
दिल मे दर्द होता है, आंखें छुप छुप कर रोती है
दिन छोटा और रातें बड़ी हो गयी हैं
और सब बातें अनकही हो गयी है
बिस्तर की सिलवटों से कुछ पता चलता है
कोई दर्द रात भर अकेले मचलता रहा है
इस दीवाने में इतना गम भरा है
तन्हाई का दिया हर जख्म हरा है
ये वक्त की नजाकत और हसरतों का इशारा है
तू दूर है अभी पर पास किनारा है
बच सकती हैं सांसे जो अब दम तोड़ने को है
क्योंकि चांदनी भी अब मुझे अकेले छोड़ने को है
17 Jan 2010
> तेरी आवाज़ तो सुनी इन कानों ने, पर दिल को सुकून कहाँ है
> तेरी आवाज़ तो सुनी इन कानों ने, पर दिल को सुकून कहाँ है
हम तो समझते हैं दिल की बेकरारी को, पर वो जुनून कहाँ है
नहीं होता अब तो दर्द भी सीने में, जो दर्द देता था वो जख्म कहाँ है,
मन तो करता है जान दे दूं, पर उफ तक न निकले वो जहर कहाँ है
जहां हो न कोई तेरे मेरे सिवा, बता वो घर कहाँ है
पहचानता न हो कोई हम दोनों को बता ऐसा शहर कहाँ है
आंसू आ तो जाए पर छलकने न पाए, ऐसा सितम कहाँ है
हर एक दर्द के होने का एहसास कराए वो मरहम कहाँ है
दो दिलों को मिलने से रोकती है जो वो दीवारें कहाँ है
हर कदम चलने से जलन हो अंगारों सी वो राहें कहाँ है
इश्क़ की मंजिल मिलना यूँ आसान नही होती
उन्हें मत सोचो जो दर्द देते हैं
बस उन्हें सोचो जो दिल को सुकून और जुनून दे
जो सितम भी ढाना जानता हो और मरहम लगाना भी जानता हो,
जो दीवारों को चिलमन और अंगारों को फूल बना दे
ऐसा हमदर्द इंसान कहाँ है
16 Jan 2010
> बारिश की बूंदों का कहना ही क्या
> बारिश की बूंदों का कहना ही क्या
उसकी तड़ातड़ मार को सहना ही क्या है
मज़ेदार होती है बूंदों की चुभन
जिस्म में पड़ते ही आनन्द का सुकून
बारिश में भीगने के मज़ा ही कुछ और है
लहरे जो बनती हैं, में चलने का मज़ा ही कुछ और है
कभी जो भीगे नहीं बस नहाने के सिवा
उन्हें एहसास क्या हो कि भीगने में मजा क्या है
कभी होंठो में बूंदों का यूँ मचलते हुए आना
कभी गालों को छूते हुए नीचे तक चले जाना
कभी सीने में गुदगुदी का एहसास कराना
कभी पूरे बदन को धीरे से सहलाना
बारिश में चलते हुए कहीं यूँ ही खो जाना
जैसे किसी को बाहों में ले कर सब से दूर हो जाना
ठंडी सी हवा चले तो किसी की याद आ जाना
बारिश के आने पर उससे मिलने को तड़प जाना
कभी दोस्तों के साथ हुड़दंगी करके मन को बहलाना
और बीमार पड़ जाए तो बीते पल को याद कर मुस्कुराना
यही है बारिश जिसकी कहानी कभी खत्म नहीं होने वाली
न मस्ती खत्म होने वाली, न प्यार न बारिश खत्म होने वाली
14 Jan 2010
> किताबों के पन्ने पलट के सोचते हैं
> किताबों के पन्ने पलट के सोचते हैं
यूँ पलट जाए जिंदगी तो, क्या बात है
तमन्ना जो पूरी होती है ख्वाब में
हक़ीक़त में हो जाए तो, क्या बात है
कुछ लोग मतलब के लिए ढूंढते है मुझे
बिना मतलब के कोई पास आए तो, क्या बात है
कत्ल कर के तो सब ले जाएंगे दिल मेरा
कोई बातों से ले जाए दिल तो, क्या बात है
जो शरीफों की शराफत में बात न हो
एक शराबी वो कह जाए तो, क्या बात है
जिंदा रहने तक तो खुशी दूंगा मैं सबको
मेरी मौत से किसी को खुशी मिल जाए तो, क्या बात है
11 jan 2010
2 comments:
"Na masti khatam hone wali na pyar na hi barish khatam hone wali."
I Like This Line........!
Nice work Mannu...>>>>
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